हिवरेबाजार : गांधी के सपनों का साकार रूप

(सितम्‍बर 2009)

प्रशान्त दुबे

महात्मा गांधी ने कहा था कि सच्चा "लोकतंत्र केन्द्र में बैठे 20 आदमी नही चला सकते हैं, वह तो नीचे से हर एक गाँव में लोगों द्वारा चलाई जाना चाहिये। सत्ता के केन्द्र इस समय दिल्ली, कलकत्ता व मुम्बई जैसे नगरों में हैं। मैं उसे भारत के 7 लाख गाँवों में बाँटना चाहूँगा।" महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के एक गाँव हिवरे बाजार ने गांधी के इस आदर्श वाक्य को अपने गाँव में साकार कर दिखाया है।

जब 1999 में हिवरेबाजार के कुछ पढ़े-लिखे नौजवानों ने यह बीड़ा उठाया कि अपने गाँव को सँवारा जाए। गाँव वालों ने उन्हें `कल के छोकरे´ कहकर उनके प्रस्ताव को एक सीरे से नकार दिया। युवकों ने हिम्मत न हारते हुए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। गाँव वालों ने युवकों की चुनौती को गम्भीरता से लिया और 9 अगस्त को एक वर्ष के लिए उन्हें सत्ता सौंप दी। नवयुवकों ने सत्ता सौंपी पोपटराव पंवार को, जो उस समय तक महाराष्ट्र की ओर से प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलते थे। युवकों ने पहले एक वर्ष को अवसर के रूप में देखा। गाँव में पहली ग्रामसभा की गई और प्राथमिकताएँ तय की गई। बिजली, पानी के बीच शिक्षा की भी बात आई और शिक्षा के सवाल पर सामूहिक सहमति बनी। विद्यालय का न तो अपना खेल का मैदान और न थी बैठने की व्यवस्था। ग्रामसभा में सबसे पहले गाँव वालों से अपील की कि अपनी बंजर पड़ी जमीन को स्कूल के लिए दान दें। शुरू में दो परिवार तैयार हुए और बाद में कई अन्य इसमें सम्मिलित हो गए। परन्तु उचित नियोजन व गाँव वालों के श्रमदान की बदौलत एक की राशि में दो कमरों का निर्माण किया गया।

एक वर्ष पश्चात् जब समीक्षा हुई तो गाँव वालों ने इन नवयुवकों को अगले पाँच वर्षों के लिए सत्ता सौंपने का निश्चय किया। उस समय गाँव में प्रतिव्यक्ति सालाना आय औसतन 800 रूपये थी। गाँव के प्रत्येक परिवार के श्रमयोग्य लोग पलायन कर जाते थे। सिंचाई न होने से जिन लोगों के पास जमीनें थीं वो भी केवल एक ही फसल ले पाते थे। यहाँ औसतन 400 मि.मी. वर्षों होती है। पोपटराव कहते हैं कि, हमने सामूहिक रूप से इस विषय पर सोचना शुरू किया। वन विभाग द्वारा लगाये पौधों को पहले गाँव वाले ही काट कर ले जाते थे। हमने तय किया कि भू-सुधार व जल संरक्षण के काम किये जायेंगे। हमने 10 लाख पेड़ लगाए जिनमें से 99 फीसदी पनप गए। यह तय किया गया कि ट्यूबवेल का कृषि में उपयोग नहीं किया जाएगा और ज्यादा पानी वाली फसलें भी नहीं लगाई जायेंगी। गन्‍ना आधे एकड़ में ही लगाया जायेगा, जो हरे चारे के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

सबने मिल कर जलग्रहण क्षेत्र का काम प्रारम्भ किया। इसमें कुछ भाग था सरकारी और कुछ श्रमदान। तीन चार वर्ष बाद वॉटरशेड़ ने अपना असर दिखाना शुरू किया। भूजल स्तर बढ़ा और मिट्टी में भी नमी बढ़ने लगी। लोगों ने दूसरी और तीसरी फसल की ओर रूख किया। अब यहाँ सब्जी भी उगाई जाती है और भूमिहीनों को गाँव में ही काम मिलने से पलायन रूक गया। पूरे गाँव से लगभग 5,000 लिटर दूध प्रतिदिन बेचा जाता है। आज गाँव की प्रति व्यक्ति वार्षक आय सालाना 800 रूपये से बढ़कर 28,000 रू. प्रतिवर्ष हो गई। यानी पाँच व्यक्तियों के परिवार की औसत आय 1.25 लाख रुपये सालाना है।  

देश में सबसे “्रष्ट व्यवस्थाओं में से एक है, राशन व्यवस्था। पर यहाँ इसकी स्थिति बिल्कुल उलट है। यहाँ पर सबसे पहले तो प्रत्येक कार्डधारी को राशन दिया जाता है। बचने पर ग्रामसभा तय करती है कि इस राशन का क्या किया जाए ? राशन दुकान संचालक का कहना है कि मेरी तौल में दिक्कत हो या कुछ और समस्या हो तो मुझसे ग्रामसभा में जवाब तलब किया जाता है।

पोपटराव कहते हैं कि सन् 1995 में हमने भू-व्यवस्थापन की बात की तो कुछ लोगों ने इसका विरोध किया। लेकिन सब कुछ था तो गाँव के हित में ही। किसान नामदेव जयवन्ता थांगे कहते हैं "मैंने पहले विरोध किया लेकिन बाद में गाँव के हित में जमीन दी। आज चारों ओर हरियाली है, पेयजल व सिंचाई का पर्याप्त जल है।" राव कहते हैं कि अब बाहरी लोगों की नजर हमारी जमीन पर है। हमने नियम बना लिए हैं कि गाँव की जमीन किसी बाहर व्यक्ति को नहीं बेची जाएगी।

गाँव के ये सारे महत्वपूर्ण निर्णय ग्राम संसद में लिए जाते हैं। इसकी बनावट भी दिल्ली के संसद भवन जैसी ही है। पोपटराव कहते हैं कि पहले जो गाँव में वर्ष भर में मात्र दो ग्रामसभाएँ ही होती थीं, लेकिन हमने बाद में अपनी जरूरत कि मुताबिक ग्रामसभाएँ करनी शुरू की। अब हम महीने में चार ग्रामसभाएँ करते हैं। दरअसल हमारी ग्रामसभा एक निर्णय सभा है। साथ ही हमारा प्रयास रहता है कि महिलाएँ इसमें विशेष रूप से आएँ और अपनी बात रखें।

ग्रामसभा ने एक फैसले के बिना हिवरेबाजार की बात अधूरी होगी। हिवरेबाजार की ग्रामसभा ने गाँव के रहमान सैयद के एकमात्र मुस्लिम परिवार के लिए श्रमदान और पंचायत की ओर से मिस्जद बनाने का फैसला किया। सन् 1989 के बाद से यहाँ चुनाव नहीं हुए हैं और पोपटराव की निर्विरोध सत्ता सौंप दी जाती है।

पारदर्शिता यहाँ मुँह नहीं चिढ़ाती। पंचायत भवन में प्रतिमाह आय-व्यय का पूरा रिकार्ड लिखकर टांग दिया जाता है। पंचायत सचिव ज्ञानेश्वर लक्ष्मण कहते हैं कि साल के अन्त में ग्रामसभा का पूरा रिकार्ड गाँव वालों के सामने और बाहरी लोगों को बुलाकर बताया जाता है। सूचना के अधिकार व स्वराज पर काम कर रहे मैग्सेसे पुरस्कार विजेता अरविन्द केजरीवाल कहते हैं, "जब मैं इस गाँव में गया तो मुझे लगा कि मैं किसी और देश में हूँ। यहाँ न भ्रष्टाचार है न सरकारी ढर्रा। बस अपना राज, ग्राम स्वराज।"

हिवरेबाजार को इस साल देश की सर्वश्रेष्ठ पंचायत का पुरस्कार दिया गया। स्थानीय निवासी बाला साहेब रमेश ने तो अपने उपनाम की जगह अपने गाँव का नाम लगा लिया है। हिवरेबाजार, गांधी के सपने का साकार रूप है। हिवरेबाजार जैसे प्रयास “भ्रष्टाचार के दलदल और सत्ता के भूखे साम्राज्य में राशनी की किरण दिखाते हैं। कल्पना कीजिए उस दिन की जब देश के 7 लाख `हिवरेबाजार´ होंगे, जिनमें होगी अपनी सत्ता और स्वराज।

(सप्रेस)

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