अगस्त 2009
निर्मम हमला या संहारक अस्त्र का परीक्षण ?
– अमित
6 अगस्त 1945 तक हिरोशिमा को जापान के एक औद्योगिक नगर के रूप में जाना जाता था। दूसरे विश्वयुद्ध के समय जापानी सेना की 5 वीं डिविजन का यहाँ मुख्यालय था। यहाँ सैनिक छावनी भी थी और यह सैनिक आपूर्ति मार्ग का महत्वपूर्ण पड़ाव भी था। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान 6 अगस्त से पूर्व इस नगर पर अमरीका ने जानबूझ कर बमबारी नहीं की थी, ताकि अणुबम से होने वाले नुकसान का `सटीक आकलन´ किया जा सके। विश्व में पहली बार 6 अगस्त 1945 को जब इस शहर पर `लिटिल बॉय´ नाम का अणुबम गिराया गया, तब जापान सरकार के राशन आपूर्ति के आँकड़ों के अनुसार शहर में कुल आबादी 2,55,000 थी। मगर इस शहर में लगातार सैनिक और सहायक मजदूर आ-जा रहे थे। गैर आधिकारिक आंकडों के अनुसार नगर की तत्कालीन आबादी 3,81,000 के आस-पास थी।
6 अगस्त को आसमान साफ था। कमाण्डर कर्नल `पॉल टिबेट्स´ की कमान में अमरीकी सेना के विमान `एनोला गे´ (बी-29) ने दक्षिण प्रशान्त के वायुसैनिक अड्डे `टिनियन´ से दो अन्य बी-29 विमानों के साथ उड़ान भरी। विमान का नाम – एनोला गे – उसके पायलट पॉल टिबेट्स की माँ के नाम पर रखा गया था। साथ उड़ान भरने वाले विमानों में एक का नाम था – ग्रेट आर्टिस्ट ! अणुबम का `प्रभाव´ नापने वाले यंत्रों-उपकरणों से सज्जित इस विमान को मेजर चाल्र्स स्वीनी उड़ा रहे थे। दूसरे अनाम विमान – बाद में जिसका नाम `नेसेसरी इविल´ रखा गया – में दुनिया को अणुबम की संहारक क्षमता और अमरीकी शक्ति के प्रमाण जुटाने के लिये उच्च क्षमता के कैमरे लगे हुए थे, इसके पायलट थे कैप्टन जॉर्ज मैक्वार्ड।
टिनियन से उड़ान भरने के बाद तीनों विमानों ने इवोजिमा होते हुए जापान की वायुसीमा में प्रवेश किया। उस वक्त विमान 8,000 फिट की ऊँचाई पर उड़ रहे थे। हिरोशिमा के पास पहुँच कर विमान की उँचाई 32,300 फिट हो गयी। उड़ान के दौरान जलसेना के कैप्टन `विलियम पार्सन्स´ ने विमान में `लिटिल बॉय´ को फिट किया और लक्ष्य पर पहुँचने के 30 मिनिट पूर्व उनके सहायक सेकेण्ड लेफ्टिनेंट टेनेण्ट मॉरिस जैप्सन ने उस अणुबम पर लगे सुरक्षा उपकरणों को हटा कर उसे सक्रिय किया।
हमले के लगभग 1 घण्टे पूर्व जापान के चेतावनी रडार ने दक्षिण जापान की ओर बढ़ रहे इन अमरीकी विमानों को चिन्हित करके सम्भावित हवाई हमले की रेडीयो से चेतावनी भी दे दी थी। सुबह लगभग 8 बजे हिरोशिमा के रडार चालक ने देखा कि विमानों की संख्या केवल तीन ही है, इसलिये उसने माना कि यह टोही विमान हैं और कोई हमाला नहीं होने जा रहा। अपने इन्धन और हवाई जहाजों को बचाने की दृष्टि से जापानी वायुसेना ने अमरीकी जहाजों पर प्रतिरोधी हवाई आक्रमण नहीं किया। अगर जापान के रडार पहचान लेते कि ये बमवर्षक विमान हैं तो शायद अधिक गम्भीर कदम उठाते।
लक्ष्य पर स्थानीय समय के अनुसार सुबह 8.15 पर बम फैंका गया। 60 किलोग्राम यूरेनियम-235 वाले `लिटिल बॉय´ नामक अणुबम को हवाई जहाज से फैंके जाने के बाद शहर से लगभग 2,000 फिट की `फटने की ऊँचाई´ तक पहुंचने में 57 सेकण्ड लगे। हवा के विपरीत बहाव के कारण यह अपने निर्धारित लक्ष्य `इयोई ब्रिज´ से करीब 800 फिट दूर `शीमा सर्जिकल क्लिनिक´ के ऊपर फटा। धमाका लगभग 13 किलोटन टी.एन.टी. के बराबर था। परिणामस्वरूप लगभग 1.6 किमी का इलाका पूरी तरह ध्वस्त हो गया। 11 वर्ग किमी का क्षेत्र आग की लपटों में घिर कर जल गया। अमरीकी अधिकारियों के अनुसार इस बम से 12 वर्ग किमी का इलाका पूरी तरह ध्वस्त हुआ था। जापानी अधिकारियों ने दावा किया कि हिरोशिमा नगर की 69 प्रतिशत इमारतें पूरी तरह नष्ट हो गयीं और इसके अलावा 6-7 प्रतिशत भवनों को आंशिक क्षति पहुँची। इसके बावजूद अमरीकी वैज्ञानिकों के अनुसार यू-235 वाला यह अस्त्र नाकाम रहा, क्योंकि इसने इन्धन के केवल 1.38 प्रतिशत का ही सक्रिय उपयोग किया।
इसके बाद 9 अगस्त 1945 को एक अमरीकी रेडीयो स्टेशन `कोलिम्बया ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम´ पर अणुबम हमले की घोषणा करते हुए अपने 20 मिनट के भाषण में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमेन ने कहा, "…विश्व इस बात पर ध्यान दे कि हिरोशिमा पर पहला अणुबम हमला किया गया है… हमने जर्मनी से आविष्कार की रेस जीत ली है… युद्ध की पीड़ा को कम करने के लिये, हजारों-हजार अमरीकी युवाओं की जान बचाने के लिये हमने ऐसा किया है… जब तक हम जापान की युद्ध करने की क्षमता को कुचल नहीं देते, तब तक हम ऐसे हमले करते रहेंगे… केवल जापान का समर्पण ही हमें रोक सकता है।"
हमले के बाद 7 से 9 अगस्त के बीच जापान के सम्राट `हिरोहितो´ व उनकी `युद्ध सलाहकार समिति´ समर्पण के स्वरूप और शर्तों पर विचार कर रही थी। लेकिन अमरीकी सरकार को अपने एक और बम का परीक्षण कर प्रभाव का सटीक आकलन करना था और उसे दुनिया को दिखाना भी था। इसलिये जापान के समर्पण तैयारी को जानते हुए भी 9 अगस्त को दक्षिणी जापान के बन्दरगाह नगर नागासाकी पर 11 बजकर 1 मिनट पर 6.4 किलो प्ल्यूटोनियम- 239 वाला `फैट मैन´ नाम का दूसरा बम गिराया गया। 43 सेकण्ड के बाद जमीन से 1,540 फिट की ऊँचाई पर यह बम फटा और इससे 21 किलोटन टी.एन.टी. के बराबर धमाका हुआ। परिणामस्वरूप 3,900 डिग्री सेल्सीयस की ऊष्मा उत्पन्न हुई और हवा की गति 1005 किमी प्रतिघण्टे तक पहुँच गयी। इससे तत्काल हुई मौतों की संख्या का अनुमान 40,000 से 75,000 के बीच है और 1945 के अन्त तक यह आँकड़ा 80,000 तक जा पहुँचा।
अमरीका की योजना के अनुसार 17 या 18 अगस्त को जापान पर तीसरा अणु हमला होना था। इसी क्रम से सितम्बर में 3 और अक्तूबर में 3 हमले करने की भी योजना थी। उधर जापान के सम्राट स्थिति को तुरन्त काबू में करना चाहते थे, जबकि सोवियत संघ ने भी जापान के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी।
अन्तत: जापान ने समर्पण की घोषणा करते हुए 14 अगस्त को हिरोहितो ने रेडियो पर कहा, "…शत्रु के पास नये और भयावह संहार क्षमता के अस्त्र हैं, जिससे वह न केवल बेगुनाहों की जान ले सकता है, बल्कि अकल्पित संहार भी कर सकता है। अगर हम आगे लड़ाई जारी रखते हैं तो जापान राष्ट्र के पूर्ण ध्वंस के साथ-साथ मानवीय सभ्यता का भी अन्त आ सकता है।"
इस प्रकार जापान के समर्पण के साथ ही विश्व इतिहास के सर्वाधिक निर्मम आक्रमण और सर्वाधिक संहारक अस्त्र के परीक्षण का पटाक्षेप हुआ।
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