अगस्त 2008
अगस्त का महीना आते ही स्कूलों, संस्थाओं, अखबारों और टी.वी. के साथ-साथ गली मोहल्ले में देशभक्ति की हवा बहने लगती है। हर वर्ग अपने हिसाब से आजादी का पर्व मनाने की तैयारी करता है। इस बहाने आजादी के मायने और जीवन में आजादी के निहितार्थों पर भी विचार का मौका मिलता है।
“भारतीय चित्त, मानस और काल´´ नामक पुस्तिका में प्रसिद्ध इतिहासकार धर्मपाल आम भारतीय व्यक्ति के मानस का विश्लेषण करते हुए बताते हैं कि हम आमतौर पर अपने बीते हुए कल को अधिक बेहतर और स्विर्णम मानते हैं। इसी नजरिये से देखें तो हमें समाज में ऐसे अनेक लोग मिलेंगे जो अंग्रेजी राज को आज की आजादी से बेहतर करार देने में नहीं हिचकते। जो लोग नादानी में ऐसा करते है, उनसे कोई शिकायत नहीं। लेकिन इससे कोई भी विवेकवान व्यक्ति इनकार नहीं कर सकता कि आजादी के मुकाबिल हर तरह से श्रेष्ठ है।
स्वतंत्रता के साथ उत्तरदायित्व जुड़ा है। उत्तरदायित्व अपनी और दूसरों की स्वतंत्रता का सम्मान करने का, उत्तरदायित्व अपने भविष्य
का निर्माण स्वयं करने का और उत्तरदायित्व अपने किए प्रत्येक कृत्य का परिणाम स्वीकार करने का ! गुलामी को बेहतर कहने वाले व्यक्ति में आजादी की जिम्मेदारी उठाने लायक मनोबन का अभाव होता है। स्वतंत्र व्यक्ति ही स्वतंत्र समाज और राष्ट्र का निर्माण कर सकता है ! आजादी वह बुनियाद है, जिसके दृढ़ आधार पर कोई राष्ट्र अपने विकसित भविष्य की इमारत खड़ी कर सकता है। इसलिये आजादी मूल्यवान है।
अनेक देशभक्त साथी वर्तमान आजादी को अधूरी मानते हैं। यह सच भी है। मगर, 15 अगस्त 1947 को प्रत्येक भारतीय नागरिक को एक व्यक्ति के रूप में और भारत को एक सम्प्रभु राष्ट्र के रूप में जो आजादी मिली है, उसका मूल्य कम नहीं है। नागरिक के रूप में हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता मिली है। हम सरकार की, नेताओं की, सामाजिक कुरीतियों की, प्रशासनिक अकर्मण्यता की सार्वजनिक भर्त्सना कर सकते हैं, सड़क-चौराहों पर खड़े होकर उसका विरोध कर सकते हैं। अपने विचार का प्रचार कर सकते हैं। उसके आधार पर समाज के लोगों को संगठित कर सकते हैं। जुलूस निकाल सकते हैं। नारे लगा सकते हैं। अखबारों-पत्रिकाओं में लेख लिख सकते हैं। यह सब करने की आजादी भी कम नहीं है।
हमें नहीं भूलना चाहिए कि इतना अधिकार प्राप्त करने के लिए भी कठोर संघर्ष करना पड़ा है। हमें इस आजादी सम्मान करते हुए, उसे कायम रखते हुए व्यक्ति और राष्ट्र को पूर्ण स्वतंत्रता के आदर्श ध्येय तक पहुँचाने का प्रयास करते रहना है। अपनी वर्तमान आजादी की रक्षा और आदर्श आजादी की उपलब्धी करने का दायित्व हमारा ही है।
यह जिम्मेदारी हम दूसरों पर नहीं टाल सकते। ऐसा करना, गुलामी को स्वीकार करना होगा।