मई 2009
: प्रस्तुति अशोक भारत
नदियों ने सभ्यता को जन्म दिया। लेकिन आज सभ्यता ही नदियों को मार रही है। भोग पर आधरित पिश्चमी विकास नीति का यह दुष्परिणाम है। आज इस विकास नीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। हमे नदियों को शोषण से मुक्त करना होगा। हिमालयीन नदियों के लिए समग्र विकास नीति बनानी होगी। पिछले वर्ष कुसहा तटबन्ध के टूटने से कोसी क्षेत्र में आए प्रलयंकारी बाढ़ ने बान्धों एवं तटबन्धों की उपयोगिता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। नदियों के बान्धने के दुष्परिणाम हमारे सामने हैं। इस पर नए सिरे से सोचने की आवश्यकता है। नदियों के प्राकृतिक बहाव को खोलना एक समाधन हो सकता है। वर्षों से क्षेत्र में रह रहे लोगों के ज्ञान से हम सीख सकते हैं। जो मानते हैं – `न कैद करो, न मुक्त करो ! कोशी का सदुपयोग करो !´ गाद की समस्या को कम करने के लिए कोशी को कई चैनलों में बाँटना चाहिए। बाढ़ एवं सुखाड़ की समस्या से निजात पाने के लिए हिमालय को वृक्षों से आच्छादित करना आवश्यक है। ये बातें वक्ताओं ने 19-20 मार्च 2009 को पटना में आयोजित राष्ट्रीय नदी परिसंवाद में कही।
परिसंवाद का आयोजन सर्व सेवा संघ (अखिल भारतीय सर्वोदय मण्डल) एवं बिहार प्रदेश सर्वोदय मण्डल ने संयुक्त रूप से किया था। इस परिसंवाद में नेपाल के अलावा भारत के 12 राज्यों के लगभग 200 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसमें देश के जाने-माने पर्यावरणविद्, वैज्ञानिक, अभियन्ता, बुद्धिजीवी, पत्रकार, लेखक, नदियों के विशेषज्ञ एवं सामाजिक कार्यकत्ताZ शामिल हुए। परिसंवाद का उद्घाटन वरिष्ठ गांधीवादी एवं पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा ने किया। उन्होंने कहा – `हम जीवन के मूल सवाल को भूलते जा रहे हैं। हम अरण्य संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। हम पर पिश्चमी विकास का भूत सवार है। इस सभ्यता में पृथ्वी व्यापार की वस्तु है। भोगवादी संस्कृति ने देखना शुरू किया है किस नदी में कितना पानी है एवं उससे हम कितना पैसा कमा सकते हैं। नदियाँ संस्कृति की वाहक हैं। हमारी संस्कृति में नदी को मैया कहते हैं। नदियों को शोषण-मुक्त करना होगा। पानी के उपयोग में संयम बरतना होगा। बाढ़ एवं सूखा से मुक्ति का एकमात्र उपाय हिमालय को वृक्ष से ढ़ँकना है।´
नदियों के जानकार एवं पर्यावरणविद् रणजीव ने कहा – “दक्षिण एशिया में नदियों के लिए एक विकास-नीति की आवश्यकता है। हिमालय को समझना जरूरी है। हिमालय हिलता-डुलता जिन्दा पहाड़ है। इसमें प्रति वर्ष औसतन 400 भूकम्प के झटके आते हैं। बांग्लादेश में 52 नदियाँ है फिर भी ढ़ाका में पिछले साल पानी के लिए गोली चली। नेपाल कहता है पानी हमारी पूँजी है। वह 10,000 मेगावाट बिजली बनाना चाहता है। नेपाल में बान्ध के सवाल पर तनाव है। दक्षिण एशिया की विकास नीति नदियों को उपेक्षित कर बनाई जाती है। आज वैकल्पिक विकास नीति की जरूरत है। नदियों के प्राकृतिक विकास को खोलना चाहिए।´´
नेपाल के सांसद शिवराज यादव ने कहा – “बाढ़ की समस्या दोनों देश (नेपाल एवं भारत) की एक जैसी है। नेपाल में वनों का विनाश एवं भूस्खलन हो रहा है। नेपाल के लोग ऊँचे पहाड़ों पर बनाए जाने वाले बान्धों के विरोधी है।´´ कोसी बान्ध, बाढ़ एवं शाश्वत विकास नीति विषय पर कोसी मामले के विशेषज्ञ अभियन्ता दिनेश कुमार मिश्र ने कहा कि पिछले वर्ष कुसहा तटबन्ध टूटने से आयी प्रलयंकारी बाढ़ ने लोगों का ध्यान कोसी की समस्या की ओर आकृष्ट किया है। पिछले 37 वर्षों से 414 गाँव (34 नेपाल एवं 380 भारत) के लोग जो तटबन्धों के बीच में रहते हैं एवं हर वर्ष इस त्रासदी को झेलते हैं। कोसी के पानी में आने वाला भारी मात्रा में गाद ही कोसी की धरा के बार-बार बदलने और उसके अनिश्चित व्यवहार का मुख्य कारण है। अनुभव से यह सिद्ध हो चुका है कि कोसी को तटबन्धों में कैद करने का प्रयास निरर्थक साबित हुआ है।
बाढ़, विस्थापन एवं पुनर्वास विषय पर वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता घनश्याम ने कहा कि विस्थापन के लिए गलत विकास नीति, राजनेता एवं भ्रष्टाचार जिम्मेदार है। सामन्यत: लोग विस्थापन का अर्थ गोचर विस्थापन से लगाते हैं जो सही नहीं है। केवल मकान बनाना पुनर्वास नहीं होता। गाँव का सामाजिक, सांस्कृतिक आधार होता है। हमें पुनर्वास की नहीं, पूर्णवास की बात करनी चाहिए।
चर्चा में शंकर शरण, रामचन्द्र खान, एस. एन. सुब्बराव, रामशरण, राजा राम मेहता, सोहम् पण्ड्या, जगदीश भाई, अब्दुल भाई, डॉ. विजय, प्रकाश प्राण, हिम्मत सिंह, देव नारायण यादव (दोनों नेपाल) आदि ने भाग लिया। विभिन्न सत्रों की अध्यक्षता डॉ. सुगन बरण्ठ, रजनी दवे, त्रिपुरारि शरण, अमरनाथ भाई एवं संचालन विजय भाई, अशोक भारत, संतोष द्विवेदी एवं रामधीरज ने किया।
सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष डॉ. सुगन बरण्ठ ने कहा कि इस परिसंवाद के आयोजन का उद्देश्य नदियों से जुड़े सभी प्रश्नों पर गइराई से विचार कर हिमालयीन नदियों के लिए समग्र नीति बनाना तथा इस विचार को लेकर लोगों के बीच जाना है। उन्होंने इस सन्दर्भ में कई महत्वपूर्ण घोषणाएँ की। इसमें कोसी पर जनता का श्वेत-पत्र जारी करना, ताकि सच्चाई लोगों तक पहुँच सके। इसके लिए त्रिपुरारि शरण, डी. के. मिश्रा, रणजीव एवं अशोक भारत की टीम बनाई गई है। कोसी का सवाल दक्षिण एशिया के कई देशों से जुड़ा है। इसके अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कक्ष को इस सन्दर्भ में लिखने का निर्णय लिया गया। समाधन की दिशा में आए सुझावों पर विचार करने के लिए अभियन्ताओं की एक टीम का गठन किया गया। पुनर्वास का सवाल एवं हिमालयीन नदियों से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर विचार कर कार्यक्रम लेने के लिए सर्व सेवा संघ के पूर्व अध्यक्ष अमरनाथ भाई की अगुआई में एक कार्यदल बनाया गया है।
(लेखक अशोक भारत सर्व सेवा संघ से जुडे हुए हैं।
सम्पर्क – राजघाट, वाराणसी, उत्तर प्रदेश।
इमेल : bharatashok@gmail.com)