– गौरव प्रताप सिंह
क्या आप चुनावों के दौरान कभी किसी ऐसे प्रत्याशी की कल्पना ही है, जो आपको सुबह छह बजे उस बगीचे में परचे बाँटता मिले जहाँ आप रोजाना सुबह की सैर के लिए जाते हों ? परचे भी अनूठे ! हाथ आया एक परचा आप पढ़ते हैं, उसमें लिखा है – “…. मित्रों, मुझे आपसे बहुत बातें करनी हैं, परन्तु मेरे पास धनबल, मीडियाबल, पार्टीबल, प्रसिद्धिबल या जो आज के बल हैं, वह नहीं हैं। ……मैं चुनाव के माध्यम से, इस पत्र के माध्यम से प्रयास कर रहा हूँ- संवाद करने का …. क्या यही है आपके सपनों का आज़ाद भारत ? यदि नहीं, तो फिर कौन है ज़िम्मेदार इन परिस्थितियों का ….?”
इस तरह का उम्मीदवार और उसके प्रचार का यह तरीका दोनों ही चौंकाने वाले हैं। प्रचार के लिए राजनीतिक दल और उम्मीदवार, दोनों ही पानी की तरह पैसा बहा कर जीतने के लिए चुनाव लड़ते हैं, जबकि ऊपर जिस उम्मीदवार का ज़िक्र किया है – लोकसभा के नई दिल्ली चुनाव क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी सत्य प्रकाश भारत – का कहना है, “मैं चुनाव `लड़´ नहीं रहा, `खेल´ रहा हूँ। विचारों का प्रचार करने के लिए मैदान में उतरा हूँ।“
सत्य प्रकाश का कथन उनके परचों से भी प्रमाणित होता है, जिसमें निर्वेर भाव से वे अपने चुनाव क्षेत्र के दोनों प्रमुख प्रत्याशियों को सम्बोधित एक `खुला पत्र´ नुमा परचा बाँटते हैं। इसमें वे कहते हैं – “मैं भाई अजय माकन(कांग्रेस) व भाई विजय गोयल (भाजपा) को अच्छी तरह से जानता हूँ। दोनों का सम्मान भी करता हूँ। दोनों ही योग्य, कर्मठ, अच्छे प्रशासक हैं….” आगे चलकर इस परचे में वे स्पष्ट करते हैं कि `प्रशासक´ होना और `नेता´ होना दो भिन्न बातें हैं। आज देश को `नेता´ की जरूरत है, प्रशासक तो बहुत से हैं।
इसी परचे में विकास के सवाल को मुद्दा बनाते हुए वे प्रश्न उठाते हैं कि विकास तो हर कोई चाहता है, मगर राष्ट्र की पृष्ठभूमि, मूल्य, समाज और भौगोलिक स्थिति को न समझकर अमरीका के मॉडल के पीछे दौड़ कर क्या राष्ट्र का विकसित होगा ? क्या अमरीकी विकास का मॉडल सही है ? क्या प्रकृति को मुट्ठीभर लोगों की अय्याशी का साधन माना जा सकता है ?
`विचारवान व्यक्तियों सक्रिय बनो, धर्म व राजनीति के क्षेत्र को सम्भालो´ शीर्षक से अपने दूसरे परचे में वे सज्जनों से राजनीति में आने की अपील करते हैं। सत्य प्रकाश भारत का मानना है कि राजनीति का गन्दा या तुच्छ मानकर त्याग देने से तो बुरे लोगों खुली छूट मिल जाएगी। इस परचे में वे लिखते हैं, “हमारी न्याय प्रणाली में न्याय नहीं निर्णय मिलता है। कर प्रणाली ऐसी है, जिसका कोई पालन करना नहीं चाहता। हमारे कानून मानकर कोई जी नहीं सकता, इनके कारण भ्रष्ट्राचार, तनाव और आतंकवाद को बढ़ावा निश्चित है……..आज हम चक्रव्यूह में फँसते जा रहे हैं। जिसमें मानवीय मूल्य, विश्वास, सम्मान, स्नेह, ममता, वात्सल्य, पूरकता, करुणा, मैत्री, सत्य व प्रेम का कहीं स्थान नहीं है। इसको बदलना होगा। इसके लिए विचारवान व्यक्तित्व चाहिए। उनको धर्म और राजनीति के क्षेत्र में आना होगा। क्योंकि ये ही देश की दिशा और दशा बदल सकते हैं। परन्तु अपने अन्दर विश्वास की कमी हो या झूठा भय, विचारवान और सच्चे लोग निष्क्रिय हो गये हैं…..”
उनके एक अन्य परचे का शीर्षक है, `आर्थिक आज़ादी के बिना राजनीतिक आज़ादी अधूरी है´ इसमें वे राष्ट्र की आर्थिक सत्ता में नागरिकों की भागीदारी की बात करते हैं। चुनावों में हार और जीत की चिन्ता किये बगैर वे अधिक से अधिक लोगों तक अपनी बात पहुँचे के प्रयास में लगे रहे। अब तक के 25 साल के सामाजिक जीवन में वे पद-प्रतिष्ठा से दूर रहे हैं। इस सवाल के जवाब में कि अब उन्हें चुनाव `खेलने´ की क्यों सूझी ? उनका कहना है – “इस लोकसभा चुनाव में मैंने अपने आप को एक प्रत्याशी के रूप में पेश करके उन लोगों के समक्ष एक विकल्प दिया है जो कहते हैं के चरित्रवान, मूल्यों पर जीने वाला और जनता से जुड़ा कोई उम्मीदवार नज़र ही नहीं आता। साथ ही मैंने एक रास्ता भी खोला है कि अच्छे लोग राजनीति में आने का साहस कर पायें।”
सत्य प्रकाश भारत के समर्थन में दिल्ली के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने समय दिया और जन-सम्पर्क में सहयाता भी की। इनका साथ देने के लिए महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, आदि विविध स्थानों से भी मित्रगण एकत्र हुए थे। जोश से भरे इस प्रत्याशी के पास वैकल्पिक विकास नीति, कृषि, शिक्षा और कर प्रणाली पर समाधानकारी विचार भी हैं। इस चुनाव को वे हार और जीत से परे एक नई शुरूआत के रूप में देख रहे हैं। आशा है, इस राह पर अन्य सज्जन भी चलने का साहस जून 2009 करेंगे।
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उनका पता है
बी – 705, प्रेरणा अपार्टमेण्ट,
प्लॉट नं. 13, सेक्टर 10, द्वारका,
दिल्ली 110 075
फोन – 09990627909
(लेखक गौरव प्रताप सिंह, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ के रहने वाले उत्साही युवा हैं और फिलहाल देश में घुमक्कड़ी कर रहे हैं।)