एकात्मता

अक्तूबर 2008


कोरी एकता का अर्थ एकात्मता नहीं होता। कदम-ताल मिला कर पंक्तिबद्ध चलते सेना के जवानों की कयावद एकरूपता का प्रदर्शन करती है। वह तो अ-विवेकी आदेश पालन सिखाने की एक तरकीब है। अनुशासन के डण्डे का भय उस एकता का आधार होता है। एकता के साथ जिस बिन्दू पर आत्मा जुड़ती है, वहाँ से एकात्मता सूत्रपात होता है। स्वार्थसिद्धि कि लिए एकजुट हुए लुटेरों का जमावड़े में बाहर से `एकता´ भले ही दिखती हो, मगर उसे एकात्मता नहीं कहा जा सकता।

जब कोई समूह, समाज या राष्ट्र किसी उदात्त उद्देश्य के लिए एकजुट होकर संकल्पबद्ध होता है, साथ मरने ही नहीं, साथ जीने का भी हौसला लेकर आगे बढ़ता है तब शायद हम हम सकते हैं कि उस समूह, समाज या राष्ट्र में एकात्मता का स्फुरण हो रहा है। एकात्मता तब साकार होती है, जब हमारे दिलों की धड़कनें एक हों, जब हमारी आँखों में एक से सपने हों, जब हमारे कानों में एक सी संगीत लहरें उठें, जब हमारे सभी प्रयत्न एक महान कार्य की सिद्धि की पूर्ति में सहायक हों, जब हमारे जीवन का उद्देश्य साथ-साथ जीते हुए सभी के जीवन को सार्थक करना हो।

एकात्मता का सन्दर्भ आध्यात्मिक है। शासन या अनुशासन के भय अथवा प्रलोभन द्वारा मृत एकता तो स्थापित की जा सकती है, जीवन्त एकात्मता नहीं। एकात्मता का सूर्य तो व्यक्ति के भीतर से ही उदित होता है। सवाल यही है कि हम एक राष्ट्र के रूप में इस एकात्मता का विकास कैसे करें? सबसे पहले हमें स्वयं से यह पूछना होगा कि क्या हम भारत को अपना देश मानते हैं? अपना देश होने का अर्थ यह है कि इसकी प्रत्येक अच्छाई और बुराई के जिम्मेदार हम हैं। हम तब तक एक एकात्म राष्ट्र नहीं बन सकते जब तक हम प्रत्येक समस्या, न्यूनता अथवा अभाव के लिए दूसरों को जिम्मेदार मानते रहेंगे।

हमें यह मानना और कहना होगा कि यह हमारा राष्ट्र है, इसे बेहतर बनाने की जिम्मेदारी हमारी है। एक व्यक्ति के रूप में जितनी क्षमता है, उतना हम राष्ट्र के विकास के लिए अर्पित करेंगे। सोच सकारात्मक होनी चाहिए और साथ ही बुराई को समाप्त करने के लिए सक्रिय प्रयास भी करने पडेंगे। गुलामी का आरम्भ तभी होता है जब हम यह मानने लगते हैं कि हमारे लिए कोई दूसरा काम करेगा। स्मरण रखना होगा कि स्वतंत्र व्यक्ति ही स्वतंत्र राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं। जो करना है हमें ही करना है और हमारे कार्यों से ही यह राष्ट्र बनेगा या बिगड़ेगा। स्वतंत्रता का अर्थ जिम्मेदारी उठाना भी होता है। यह सवाल सदैव हमारे भीतर उठते रहना चाहिए कि हम राष्ट्र निर्माण के महान कार्य में कौन सी जिम्मेदारी उठा रहे हैं?

सवाल यह नहीं है कि हम कितना बड़ा काम कर रहे हैं। सूर्य और दीपक दोनों ही प्रकाश के स्त्रोत हैं और अपने-अपने स्तर पर दोनों की अन्धकार को दूर भगाते हैं। स्व-भाव के अनुरूप कोई भी भूमिका हम चुनें उसे राष्ट्र को समर्पित करने से ही वह राष्ट्रसेवा का रूप लेगी। सेवा के लिए विनम्र होना पहली शर्त है। इसके लिए आगे बढ़कर प्रयत्न करने पड़ते हैं। हम केवल अपने ही कुल को श्रेष्ठ मानें, दूसरों की जाति को छोटा मानें, दूसरों की भाषा का मजाक बनाएँ तो हम एक राष्ट्र के रूप में कभी खड़े नहीं हो सकते। हम अपने देशबन्धुओं के बारे में अधिक से अधिक जानें, उनका रहन-सहन, कला, संस्कृति, इतिहास को जानें। जितनी हो सके, उतनी भाषाएँ सीखने की कोशिश करें। यात्राएँ करें। भारत में प्राचीन काल से ही सुदूर स्थानों की यात्रा करने वालों को सम्मान दिया जाता था। इससे आपको पता चलेगा कि भारत क्या है? उसकी विशेषताएँ क्या है? आपको दिखेगा कि जितनी विविधता यहाँ फैली हुई है, उससे कहीं अधिक मात्रा में एकता के सूत्र आपको नजर आयेंगे।

परिचय से ही मित्रता का आरम्भ होता है। एकात्मता का कोई जीवन्त उदाहरण है, तो वह मैत्री ही है। अपने मित्रों को हम उनकी अच्छाई-बुराई के साथ स्वीकार करते हैं। साथ ही प्रयास करते हैं कि उसकी बुराई धीरे-धीरे खत्म होती जाएँ। मित्रता करने वाले दोनों की व्यक्तियों पर एक-दूसरे का प्रभाव पड़ता है। मैत्री उन दोनों को ही बदल देती है। यही एकात्मता है।

जब हम एक राष्ट्र के रूप में एकात्म होंगे, तो ना हम हिन्दू रहेंगे, न मुसलमान या ईसाई हमारी पहचान एक भारतीय की होगी। हमारी मातृभाषा जो हो सो हो, अन्य भाषाएँ उसकी शत्रु नहीं, बहनें होंगी। अपनी क्षेत्रीय संस्कृति और इतिहास से प्रेम होना स्वाभाविक है, मगर हम उसे अपने अन्य देशबन्धुओं के खिलाफ अस्त्र के रूप में नहीं उपयोग करेंगे। हमारी क्षेत्रियता भारत की विशालता का एक हिस्सा है, वह सम्पूर्ण तभी होगी, जब समूचे भारत की विविधताओं के साथ उसका एकात्मक रिश्ता बने।

एक व्यक्ति के रूप में भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि हम एकात्मता को आत्मसात करें। इसे सामूहिक और संगठित रूप देने के लिए `आन्तर भारती´ का जन्म हुआ है। आन्तर भारती एक बिरादरी के रूप में एकात्मता को समर्पित है। आओ ! इसे हम अपने जीवन का ध्येय बनाएँ !

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यह प्रविष्टि सम्पादकीय में पोस्ट की गई थी। बुकमार्क करें पर्मालिंक

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