आन्तर भारती के साथ-साथ

– हर्षद रावल

मैं हाईस्कुल की पढ़ाई पूरी करके सन् 1971 में `लोकभारती´ (सणोसरा, जिला – भावनगर, गुजरात) के लोकसेवा महाविद्यालय में दाखिल हुआ। दीपावली की छुट्टी के बाद आन्तर भारती, पूणे से महाराष्ट्र के शिक्षकों की `गुजरात शिक्षा दर्शन´ यात्रा हमारे कॉलेज में आई थी। रात्रि के सांस्कृतिक कार्यक्रम में आन्तर भारती के संयोजक श्री चन्द्रकान्त भाई शहा आये थे। इनके माध्यम से आन्तर भारती का प्रथम परिचय मिला। हमारी यह पहली मुलाकात आजीवन की मैत्री बन गई।

दूसरे वर्ष में हमारे कॉलेज का `राष्ट्रीय सेवा योजना´ (एन.एस.एस.) का ग्राम शिविर ईश्वरीया गाँव में आयोजित हुआ था। इसमें हमारी मुलाकात श्री यदुनाथ थत्ते से हुई। हमारे समूह के साथ राष्ट्रीय एकात्मता परिवार और समाज में समत्वपूर्ण कैसे रहा जाए, इस विषय पर चर्चा हुई। इससे मुझे आन्तर भारती की मूल संकल्पना समझ में आई।

हमें गर्मी की छुट्टियों में महाराष्ट्र दर्शन यात्रा के दौरान बाबा आमटे की संस्था `सोमनाथ प्रकल्प´ के श्रम शिविर में जाने का मौका मिला। कुष्ट रोग से पीड़ितों के पुनर्वास का वहाँ अच्छा काम चल रहा है। उनका जीवन जैसे करुणा का काव्य ! हमारे कॉलेज के प्राध्यापक श्री प्रवीण भाई मशरूवाला ने हमें हिमालय दर्शन की प्रेरणा दी। प्रवीण भाई मशरूवाला आन्तर भारती के माध्यम से हिमालय दर्शन का कार्यक्रम करते थे। तीसरे वर्ष में रेल हड़ताल के कारण यातायात बन्द रहा तो मैंने अगले वर्ष में प्रवास करने की ठान ली। हिमालय दर्शन की यात्रा का कार्यक्रम हुआ। यात्रा के दौरान जयपुर में आन्तर भारती से जुड़ा एक परिवार हमारे लिये पूड़ी-सब्जी का भोजन लेकर स्टेशन पर स्वागत करने आया था। यह घटना मेरे हृदय पर हमेशा के लिये अंकित हो गई। पूरे राष्ट्र में ऐसी परिवार भावना बने तो अवश्य ही एक अच्छे राष्ट्र का निर्माण हो सकता है।

आन्तर भारती, तातावाडी, में गोआ, गुजरात और उत्तर प्रदेश के बहुत से युवा मित्र एक शिविर में सहभागी होने आए थे। उत्तर प्रदेश से आया युवक दीवन धपोला मेरा आजीवन मित्र बन गया। आन्तर भारती के हर साल होने वाले कार्यक्रमों में मैं जाता था। शिविर संचालकों से निजी परिचय होने लगा। उनकी प्रेरणा से साने गुरुजी के जीवन के बारे में पढना शुरू किया। आन्तर भारती, याने हृदय की वाणी के विचार बीज बचपन से ही बोये जाएँ, इस विचार से राष्ट्रीय स्तर के `बाल आनन्द महोत्सव´ (औरंगाबाद)में 15 बच्चे लेकर जाने का अवसर मिला। बाल आनन्द महोत्सव याने भारत का लघु रूप!

सन् 1988 में नर्मदा बान्ध निर्माण के स्थान `केवडिया´ (गुजरात) में राष्ट्रीय एकात्मता और पर्यावरण संरक्षण शिविर´ का आयोजन हुआ। पूरे देश से 25,000 युवक-युवतियों ने इस शिविर में भाग लिया। इसमें मुझे उत्तर गुजरात के 616 नौजवानों को जोड़ने का मौका मिला। इसके बाद, 1992 तक हर साल केवडिया में युवा शिविर आयोजित होते रहे और प्रत्येक शिविर में मुझे युवाओं को लेकर जाने का मौका मिला। एक बार `राष्ट्रीय युवा योजना´ के शिविर में चित्रकूट भी जाने का अवसर मिला। बाद में, मैं अपने परिचय के युवकों का समूह बनाकर उन्हें कश्मीर, इलाहाबाद, मुम्बई, आदि के शिविरों में को भेजते रहा।

`भारत जोड़ो यात्रा´ में मुझे सत्य प्रकाश भारत नाम का युवा मित्र मिला, जो सारे भारत में युवकों को जोड़ने का काम करता है। सन् 1992 से आज तक विश्वग्राम जैसे संगठन, जो युवा शिविर, बाल आनन्द महोत्सव, भारत दर्शन यात्रा जैसे कार्यक्रम हर साल करता है। भूकम्प, कौमी दंगे, सुनामी, जैसी आपद् स्थितियों में युवाओं का दल लेकर लम्बे समय तक राहत और पुर्ननिर्माण का काम करता है, ऐसे संगठन `आन्तर भारती´ के साथ लम्बे समय का तक काम करने का अवसर मुझे मिला है।

आज भी इस प्रकार के कार्यक्रम नियमित रूप से जारी हैं। वर्तमान में गुजरात में मैं अपने विद्यालय को राष्ट्रीय विद्यालय की कल्पना के अनुसार चलाने का प्रयत्न कर रहा हूँ। यहाँ हमने एक छात्रावास शुरू किया है, जिसमें रहकर कच्छ में आये भूकम्प से प्रभावित पाँच साल के 25 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। हमारे विद्यालय में प्रत्येक कौम, जाति, धर्म के बच्चे पढ़ने आते हैं। आन्तर भारती एक संस्था से बढ़कर एकात्मक भारत का आन्दोलन है। आज देश धर्म, जाति, पंथ, भाषा, प्रदेश, कौम, अमीर-गरीब जैसे अनेक प्रकार के भेदों से टूटता जा रहा है। इसे जोड़ने का कार्य आन्तर भारती का है

आन्तर भारती याने विश्व एकता की ओर पहला कदम भारत का प्रत्येक नागरिक सर्व धर्म समभाव से जीये , इस भावना द्वारा देश को सशक्त बना कर विश्व ऐक्य की भावना को आगे बढ़ाए। इसका साधन अहिंसा हो। मार्ग शोषण का नहीं, सहकार का हो। विश्व शान्ति ही एक लक्ष्य हो। पूरा विश्व शान्ति से रहे, यह प्रर्थना हो ! इस विचार को केन्द्र में रखकर राष्ट्र और विश्व का निर्माण कैसे हो, इसका चिन्तन, मनन और अमल करने का मेरा विनम्र प्रयत्न है।

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