आँकड़ों से परे अर्थ-व्यवस्था

जुलाई 2009


अर्थव्यवस्था का संकट बीत गया या अभी और पतन देखना बाकी है? यह एक ऐसा ज्वलन्त प्रश्न है, जो तमाम बुद्धिजीवियों को खाये जा रहा है।

लोकसभा चुनावों में तीसरे-चौथे गठबन्धन के हाशिए पर सिमट जाने की खबर पाकर शेयर बाजार का सूचकांक रबर की गेन्द की तरह उछल पड़ा था। 16 मई को चुनाव नतीजे आये। 17 मई को रविवार था। 18 मई को मुम्बई शेयर बाजार खुलते ही रॉकेट की तरह ऊपर उठने लगा। अपनी स्थापना (सन् 1875) से अब तक के इतिहास में मुम्बई शेयर बाजार केवल इसी दिन 2111 अंकों के साथ 17.3 प्रतिशत तक चढ़ गया।

यह चमत्कार दुनिया के इतिहास में अभूतर्व अजूबा है। अजूबा इसलिये भी कि इसका रहस्य किताबी अर्थशास्त्र के आधार पर समझा नहीं जा सकता। भारत की अर्थ-व्यवस्था में कोई वास्तविक सुधार नहीं हुआ था। उद्योगों ने भी कोई चमत्कारी प्रदर्शन नहीं किया था। ना ही सेवा या कृषि क्षेत्र से कोई शुभ समाचार मिला था। दुनिया भर की अर्थ-व्यवस्थाएँ यथवत् मन्दी की मार से कराह रही थीं। घटना केवल यह थी कि भारत में कांग्रेस को अपेक्षा से अधिक सीटें मिलीं और मनमोहन सिंह वाम दलों के बगैर सरकार बनाने वाले थे। देश की अर्थ-व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं हुआ था। इसके बावजूद – अखबारों के अनुसार – एक मिनट में `निवेशकों´ ने 3.6 लाख करोड रुपये की `कमाई´ कर ली। इस आँकडे़ को पढ़ा भर जा सकता है, आकार की कल्पना भी कठिन है।

ये काहे की कमाई है ? अर्थ-व्यवस्था में क्या घटा या क्या बढ़ा ? 19 जून को खबर पढ़ने को मिली कि पिछले तीन दशकों में पहली बार `थोक मूल्य सूचकांक´ (मुद्रस्फीति की दर नापने का एक आधार) पहली बार शून्य से भी कम -1.61 पर पहुँच गया है। इस आँकड़े का अर्थ है कि बाजार से महंगाई कम होनी चाहिये। मगर ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा। सरकार, प्रचार माध्यम और अधिकांश बुद्धिजीवी देश आर्थिक स्थिति बताने के लिये आकड़ों का ही सहारा लेते हैं और आम जनता उसमें उलझ कर रह जाती है।

वर्तमान अर्थव्यवस्था और इस के अबूझ उतार-चढ़ाव समझने के लिये आन्तर भारती के इस अंक में हम आपके लिए कुछ विशेष लेख लेकर आये हैं। आशा है आपको पसन्द आयेंगे।

अनेक पाठकों ने हमें आग्रह किया था कि पत्रिका में अक्षर बहुत छोटे होने से पढ़ने में दिक्कत आ रही है। इस बार कुछ पन्‍नों पर आप अक्षरों का आकार बड़ा पायेंगे।

शुभकामना

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यह प्रविष्टि सम्पादकीय में पोस्ट की गई थी। बुकमार्क करें पर्मालिंक

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